Wednesday, June 16, 2010

पत्रकार की नौकरी के लिए भी तय हो मापदण्ड

पेड न्यूज़ आजकल चर्चाओं में हैं। बड़े-बड़े जर्नलिस्ट पेड न्यूज़ के खिलाफ हैं। प्रभाष जोशी जी ने विरोध कर इसकी शुरूआत की थी। अभी भी इस पर बहस जारी है। प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को हाल में कुछ सुझाव भी दिए गए हैं। इन सुझावों पर अमल हो पाएगा या नहीं, इस बारे में तो अभी कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन इससे ज्यादा ज़रूरत है पत्रकारिता के इंस्टीट्यूट खोले जाने के लिए मापदण्ड तैयार करने की। मैं एक बड़े इंस्टीट्यूट से पास आउट हूं...तीन साल पहले ब्राडकॉस्ट की पढ़ाई पूरी की। इन तीन साल में अभी मात्र सब एडिटर तक पहुंचा हूं। लेकिन मेरे कुछ साथी भी है जो दिल्ली-एनसीआर में रहने के बाद इंटर्न करने के लिए भी तरस गए । कॉलेज की तरफ से उन्हें न तो कोई इंटर्नशिप दी गई और न ही कोई जॉब मिली। नतीजा यह हुआ कि अधिकतर ने या तो शादी कर ली या लाइन चेंज कर दी। इसके अलावा इन दिनों कई कॉलेज है जो जॉब का प्रलोभन देकर मोटी रकम वसूल रहे हैं और छात्रों को पढ़ाने के लिए उनके पास न तो कोई विजन है और न ही पढ़ाने के लिए जाने-माने टीचर। इस सब के बीच सबसे बड़ी बात उन छात्रों की है जो बिहार और पूर्वी यूपी से यहां बड़ी उम्मीदों से कैरियर बनाने आते हैं लेकिन काबिल होने के बाद भी जॉब से वत हैं। मैं अपने उन दोस्तों को जानता हूं जो पिछले तीन सालों से मीडिया में कैरियर बनाने के लिए प्रयासरत हैं। इन दोस्तों का कसूर सिर्फ इतना है कि इनका मीडिया में कोई गॉडफादर नहीं है। मैं चैलेंज के साथ कह सकता हूं मीडिया में जो लोग पिछले 10 सालों से काम कर रहे हैं उनसे ये छात्र किसी भी मामले में पीछे नहीं हैं फिर भी आज कैरियर बनाने के लिए संघर्षरत हैं। मैं अपने बहुत से छात्रों को जानता हूं जो कर्ज लेकर यहां पढ़ाई करने के लिए आए। दो साल तक यहां रहे। कोई दो हजार की नौकरी कर रहा है, कोई वापस घर लौट गया है तो किसी ने लाइन बदल दी। सवाल यह है कि देश के धुरंदर पत्रकार सरकार से इसके लिए मापदण्ड तय करने की मांग क्यों नहीं करते। क्या इन सीनियर पत्रकारों को इसके खिलाफ आवाज़ नहीं उठानी चाहिए । अब समय आ गया है पेड न्यूज़ के अलावा इंस्टीट्यूट में एडमीशन, इलेक्ट्रानिक चैनलों और समाचार पत्रों में नौकरी के मापदण्ड तय करने का। सरकार को भी इसके लिए पहल करनी होगी।